Science Time (H) - 11/02/2022

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नवाचार और अनुसंधान संबंधी आवश्यकताओं के अनुरूप बनाई गयी नई शिक्षा नीति का लक्ष्य है - छात्रों को ज़रूरी कौशल एवं ज्ञान से लैस करना और विज्ञान, तकनीक, अकादमिक क्षेत्र और उद्योग जगत में दक्ष लोगों की कमी को दूर करते हुए, देश को नॉलेज सुपर पॉवर के रूप में स्थापित करना। मगर यही तभी संभव है जब विज्ञान एवं तकनीक की शिक्षा और संचार मातृभाषा में हो. जब हम मातृभाषा में नयी चीज़ें सीखते हैं, तो मस्तिष्क की ग्राह्यता सर्वाधिक होती है। इस अवधारणा को केंद्र में रखते हुये अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यानी एआइसीटीई ने अंग्रेजी के साथ-साथ आठ भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराने की पहल की है। अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य भाषाएं हैं - हिंदी, तमिल, तेलुगु, बांग्ला, मराठी, कन्नड़, मलयालम और गुजराती। जानना दिलचस्प होगा कि आखिर भाषा और तकनीकी शिक्षा के बीच क्या संबंध है? स्थानीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा के लिये स्तरीय पुस्तकें कैसे उपलब्ध हो सकेंगी ? मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने से सम्बंधित रोडमैप तैयार करने के लिये जिस टास्कफोर्स का गठन किया गया था, उसने इस दिशा में अब तक क्या कुछ किया है ? क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिये कुशल शिक्षकों की आवश्यकता की पूर्ति कैसे हो पायेगी ? क्षेत्रीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण अनुवाद की व्यवस्था कैसे सुनिश्चित होगी ? आम लोगों में "विज्ञान के प्रति प्रेम" और वैज्ञानिक सोच विकसित करने में स्थानीय भाषाओं का कितना योगदान हो सकता है ? इनोवेशन, क्रियेटिविटी और टेक्नॉलॉजी के इस युग में विज्ञान शिक्षकों की भूमिका कैसी होगी | इन तमाम सवालों के विश्वसनीय जवाब दे रहे हैं - राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण परिषद यानी NCVET के अध्यक्ष, निर्मलजीत सिंह कलसी, आई.आई. टी. कानपुर के यांत्रिकी अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर, डॉ. अविनाश कुमार अग्रवाल, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव और शिक्षाविद एवं समाजसेवी, संतोष तनेजा।

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