Leather and Footwear Technology (H)

चमड़ा उद्योग भारत में सबसे पुराने उद्योगों में से एक है।महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा अर्जक और रोजगार प्रदाता उद्योग होने के कारण चमड़ा उद्योग का देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है। चमड़ा और जूते सह-संबंधित हैं, वे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और यही कारण है कि चमड़े की प्रक्रिया और बाद में चमड़े के उत्पादों के निर्माण को समझना आवश्यक है। हम चमड़े के प्रसंस्करण की विस्तृत प्रक्रिया और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को समझने की कोशिश कर रहे हैं। जल प्रदूषण को दूर करने और अन्य अपशिष्टों को कम करने के लिए हमारे वैज्ञानिकों द्वारा शुरू किए गए नवाचारों और विधियों के परिणामस्वरूप काफी सुधार हुआ है। हम पूरी प्रक्रिया का प्रदर्शन कर रहे हैं और नई तकनीकों ने कैसे मदद की है, साथ ही इसमें शामिल नई तकनीकों के इनपुट के साथ जूता बनाने की विस्तृत प्रक्रिया को भी दर्शाया गया है। चमड़ा उद्योग एक नगण्य स्थिति से आज एक सम्मानजनक स्थिति में विकसित हो गया है, दूसरे यह बड़े पैमाने पर रोजगार का स्रोत बन गया है। यह क्षेत्र नए उद्यमियों को प्रोत्साहित कर रहा है, कुशल जनशक्ति और प्रशिक्षित तकनीशियनों का खड़ा कर रहा है। सीएसआईआर—सीएलआरआई जैसे संस्थानों के वैज्ञानिक हस्तक्षेपों ने चमड़ा उद्योग को नये मुकाम पर पहुंचने में सहयता की है। जिससे 'पारंपरिक' उद्योग के लिए 1948 में अपने कारोबार को 70 करोड़ से बढ़ाकर 85,000 करोड़ करना और निर्यात का मूल्य 37,000 करोड़ से अधिक करना संभव बना दिया है। हमने चमड़े के निर्माण की पुरानी शैली से पूरी तरह से स्वचालित विनिर्माण तकनीक तक का लंबा सफर तय किया है। आज भारतीय चमड़ा उद्योग अपनी गुणवत्ता और कुशलता के लिए सम्मान और प्रशंसा प्राप्त कर रहा है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चल रही है और अपनी स्वदेशी तकनीकों के समर्थन से हम विश्व बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकते हैं। चमड़ा प्रौद्योगिकी में हो रहे बदलावों ने चमड़ा उद्योग को नई दिशा दी है। आज भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है। देखिए चमड़ा प्रौद्योगिकी में हो रहे विकास की कहानी केवल इंडिया साइंस पर।

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